धूल से गए फूल









मोटापे को आधुनिक समाज का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है और इसका आरोप अक्सर आधुनिक जीवन शैली के मत्थे मढ़ा जाता है। धारणा यह है कि जहां एक तरफ पिज्जा, बर्गर जैसे फास्ट फूड और तैलीय भोजन से लोगों के शरीर पर चर्बी बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर खाली वक्त में कसरत या मेहनत न करके टीवी, कंप्यूटर या मोबाइल के साथ निठल्ले बैठे रहना लोगों के शारीरिक वजन को बढ़ा रहा है। इसी के साथ यह भी सच है कि आज के दौर में जितना शोध मोटापे जैसी समस्याओं पर हो रहा है, उतना तो कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों पर भी नहीं हो रहा। शायद इसकी वजह यह भी है कि मोटापे के इलाज का बाजार कैंसर के इलाज के बाजार से कहीं ज्यादा बड़ा और कहीं ज्यादा मुनाफे की संभावनाओं वाला है। इसी शोध के चलते हर महीने मोटापे का नया कारण हमें पता चलता है। हालांकि इस बार जो नया कारण सामने आया है, वह थोड़ा गंभीर किस्म का है और शायद यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसके पीछे बाजार की कोई बड़ी प्रेरणा काम कर रही है। अमेरिकी केमिकल सोसायटी के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि धूल भी हमारा मोटापा बढ़ाने का काम करती है। सड़कों और बाजारों में पाई जाने वाली धूल ही नहीं, हमारे घर के सामान पर जमा होने वाली धूल भी। इन वैज्ञानिकों ने पाया कि घर की धूल में कुछ खास तरह के रसायन होते हैं, जिन्हें एंडोक्राइनिक डिस्रेप्टिंग केमिकल्स कहा जाता है। ये रसायन सिंथेटिक भी हो सकते हैं और प्राकृतिक भी। सबसे ज्यादा ये तरह-तरह के प्लास्टिक में पाए जाते हैं। ये हमारे शरीर में पैदा होने वाले हार्मोन के लिए बाधा पैदा करते हैं और उनके संतुलन को बिगाड़ देते हैं। वैज्ञानिकों ने पाया कि धूल में पाए जाने वाले ऐसे रसायन हमारे शरीर में कुछ खास तरह की वसा यानी फैट का संचय बढ़ा देते हैं, जिसका अर्थ होता है, मोटापे का बढ़ना। इस तरह के रसायन आमतौर पर उपभोक्ता वस्तुओं और उनकी पैकेजिंग के साथ हमारे घर में आते हैं और अंत में घर की धूल का हिस्सा बन जाते हैं। वैज्ञानिकों ने इन रसायनों को लेकर पशुओं पर लंबा अध्ययन किया और यह नतीजा निकाला कि यदि कोई बचपन में ही इन रसायनों के संपर्क में आता है, तो आगे चलकर उसके मोटे होने की आशंका बहुत ज्यादा है। दूसरी ओर, अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी का शोध हमें बताता है कि हर बच्चा एक दिन में औसतन 50 माइक्रोग्राम धूल फांकता है। इससे हम आसानी से समझ सकते हैं कि आगे चलकर इनके मोटे होने का खतरा कितना ज्यादा है। चिकित्सा शास्त्र मानता है कि मोटापा अपने आप में कोई रोग नहीं, मगर यह शरीर में कई तरह के रोगों का कारण जरूर बनता है। नया शोध बताता है कि अभी तक हम जो इससे मुक्ति का रास्ता कम वसा युक्त खाने या मीठी चीजों का कम उपभोग करने में खोजते थे, वह अपने आप में पूरा इलाज नहीं है। इसका यह मतलब भी नहीं है कि इस तरह के खान-पान को पूरी तरह दोषमुक्त किया जा सकता है। मगर हमें यह समझना होगा कि समाज में बढ़ रहे मोटापे के गुनहगार और भी हैं। अभी तक मोटे लोगों को यह समझाया जाता था कि वे अगर रोगमुक्त होना चाहते हैं, तो अपनी जीवन शैली बदलें, खासकर अपने खान-पान के तौर-तरीके को और साथ ही कसरत जैसे कुछ श्रम भी करें। लेकिन नया शोध बताता है कि मोटापे से बचने के लिए इतना ही काफी नहीं है। हम अपनी जीवन शैली के कुछ हिस्सों को तो अपनी मेहनत से बदल सकते हैं, पर सब कुछ बदलना इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि हमारे घरों की धूल भी आखिर हमारी आधुनिक जीवन शैली का ही एक नतीजा है।