एड्स पीड़ित के बच्चे भी इसका शिकार होंगे। यह धारणा अब गलत साबित हो रही है। लगातार इलाज और बच्चों की अच्छी देखभाल से उन्हें संक्रमण से बचाया जा सकता है। एसएन मेडिकल कॉलेज में प्रिवेंशन ऑफ पेरेन्ट टू चाइल्ड ट्रांसमिशन सेंटर (पीपीटीसीटी) इसी की रोकथाम कर रहा है। अस्पताल में यह सेंटर 2005 से चल रहा है। यहां एचआईवी संक्रमित माताओं का प्रसव कराया जाता है। प्रसव के बाद बच्चे की विशेष देखभाल की जाती है। उसका परीक्षण किया जाता है। बच्चे का आखिरी परीक्षण 18 माह पर किया जाता है। इसमें अगर एचआईवी नहीं है तो बच्चा बिलकुल स्वस्थ माना जाता है। अच्छी बात यह कि तमाम एचआईवी संक्रमित माताओं के बच्चों पर इस रोग की छाया तक नहीं पड़ी है। 2005 से अब तक यहां 297 प्रसव किए गए हैं। इनमें से 178 की रिपोर्ट नकारात्मक आई है। 2019 में अब तक एचआईवी की जांच के बाद 20 बच्चों में इसकी रिपोर्ट नकारात्मक आई है। शेष प्रसव के बाद जांच के लिए नहीं आए। कुल जांच:- 7539 कुल प्रसव:- 34 सामान्य:- 21 आपरेशन:- 13 नकारात्मक:- 20 असुरक्षित यौन संबंध जानलेवा एड्स का बड़ा कारण है। एसएन कॉलेज में चल रहे एंटी रिट्रो वायरल थेरेपी (एआरटी) सेंटर के आंकड़े इसे साबित करते हैं। दूसरे सभी कारण मिलाकर भी इसका 50 प्रतिशत नहीं हैं। आंकड़ों के मुताबिक जिले में सबसे ज्यादा एचआईवी पॉजीटिव असुरक्षित यौन संबंधों के कारण हुए हैं। सेंटर में कुल पंजीकृत मरीजों की संख्या 9839 है। असुरक्षित संबंधों के कारण पीड़ितों की तादाद 4574 है। शेष कारणों से पीड़ितों की संख्या 1800 के आसपास है। इनमें सेक्स वर्कर, ट्रक चालक, संक्रमित सुई से शिकार होने वाले, समलैंगिक और मां से ग्रहण करने वाले शामिल हैं। जिले में एक साल में 2414 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। इसका कारण मरीजों का दवाइयां छोड़ना है। सरकार के साथ स्वास्थ्य विभाग के लिए यह चिंता का कारण है। सेंटर प्रभारी डा. जितेंद्र दौनेरिया का कहना है कि जरूरी नहीं कि माता-पिता से बच्चे को 100 प्रतिशत रोग हो जाए। सावधानियां बरत बच्चे को सुरक्षित किया जा सकता है।